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अंबुधि का अर्थ

[ anebudhi ]
अंबुधि उदाहरण वाक्य

परिभाषा

संज्ञा
  1. खारे पानी की वह विशाल राशि जो चारों ओर से पृथ्वी के स्थल भाग से घिरी हुई हो:"समुद्र रत्नों की खान है"
    पर्याय: समुद्र, सागर, सिंधु, सिन्धु, अम्बुधि, उदधि, पयोधि, तोयनिधि, पयोनिधि, वारिधि, जलधि, जलनिधि, अब्धि, समुन्दर, समुंदर, समन्दर, समंदर, रत्नाकर, तिमिकोश, वारिनिधि, अपांनाथ, अपांनिधि, अपांपति, जलपति, वारींद्र, वारीन्द्र, वारिराशि, वारीश, पाथोधि, मगरधर, अबिंधन, अबिन्धन, नदीश, नदीपति, नदीकांत, नदीकान्त, नदराज, नदीन, तोयधि, नदीभल्लातक, झषनिकेत, तोयराज, तोयराशि, पाथोनिधि, अमीनिधि, पाथि, शुद्धोद, पयोधर, तीवर, तरंत, तरन्त, जलेश, जलेश्वर, अर्णव, अवधिमान, अवारपार, रत्नगर्भ, लक्ष्मी-तात, तोयालय, अविष, परांगव, मकरांक, मकरध्वज, मकरालय, मकरावास, यादईश, पाथनाथ, पाथनिधि, वरुणालय, वरुणवास, अधिरथी, यादःपति, वरुणोद, सलिलपति, सलिलराज, सुदामा, सुदाम, सुदामन

उदाहरण वाक्य

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  1. है प्याला अंबुधि का गहरा ।
  2. न जाने कितनी रातों को गँवा दिया संयोग के आनन्द अंबुधि में फिर भी समझ न आया कि आखिर किसे कहा जाता है केलि !
  3. नहीं तुम रूप , नहीं आसक्ति , नहीं मोह , नहीं प्यार जीवन का एक उदास पर भव्य गान अंबुधि से उठी एक लहर विशाल जिसमें भीगा मेरा भा ल. ..
  4. पता नहीं कैसे कैसे व्यतिरेक , विषमता, बाधा, दुख, आनंद, पुलक आदि में प्रवहित होती चली जा रही है और अनंत अंबुधि के वक्षस्थल में अपने को लय करके अपने स्रोत में सुख से सो जायेगी ।
  5. पता नहीं कैसे कैसे व्यतिरेक , विषमता , बाधा , दुख , आनंद , पुलक आदि में प्रवहित होती चली जा रही है और अनंत अंबुधि के वक्षस्थल में अपने को लय करके अपने स्रोत में सुख से सो जायेगी।
  6. प्रथम चरण है नए स्वर्ग का , है मंजिल का छोर इस जन- मंथन से उठ आई , पहली रत्न हिलोर अभी षेष है पूरी होना , जीवन मुक्ता डोर क्यांकि नहीं मिट पाई दुख की विगत सांवली कोर ले युग की पतवार बने , अंबुधि महान रहना आज जीत के रात पहरूए सावधान रहना।
  7. प्रथम चरण है नए स्वर्ग का , है मंजिल का छोर इस जन- मंथन से उठ आई , पहली रत्न हिलोर अभी षेष है पूरी होना , जीवन मुक्ता डोर क्यांकि नहीं मिट पाई दुख की विगत सांवली कोर ले युग की पतवार बने , अंबुधि महान रहना आज जीत के रात पहरूए सावधान रहना।
  8. तुम मुझे ले जाती हो इस पृथ्वी की निर्जन प्रातों तक अक्लांत धूसर गहन रातों तक तुम्हारे होने से ही खिलता है नील चंपा मैंने तुममें देखा , पाया वह उन्नत भाव समवित जो मानवता का अब तक का संचय नहीं तुम रूप, नहीं आसक्ति, नहीं मोह, नहीं प्यार जीवन का एक उदास पर भव्य गान अंबुधि से उठी एक लहर विशाल जिसमें भीगा मेरा भाल...


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  1. अंबुजा
  2. अंबुजासना
  3. अंबुतस्कर
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  8. अंबेडकर नगर
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