अन्नरस का अर्थ
[ anenres ]
अन्नरस उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- जठराग्नि में अन्न का परिपाक होने पर बनने वाला रस:"अधिकांश अन्नरस का अवशोषण छोटी आँत में होता है"
पर्याय: अन्न-रस
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- अन्नरस खून में मिलकर सतत् शक्तिप्रदान करता है , इतना ही हम जानते हैं ।
- अपक्व अन्नरस में सड़न होने से यह शुक्तरूप अर्थात सिरका की तरह होकर विषतुल्य हो जाती है-
- रक्ताग्नि आहार द्रव्यों से उत्पन्न ' अन्नरस ' जब देह जातीय बनकर रसाग्नि पाक के उपरान्त रस धातु बन जाता है और रक्त में मिश्रित होकर तद्रूप हो लेता है तब इसका रक्ताग्नि से पाक होता है ।।
- रक्ताग्नि आहार द्रव्यों से उत्पन्न ' अन्नरस ' जब देह जातीय बनकर रसाग्नि पाक के उपरान्त रस धातु बन जाता है और रक्त में मिश्रित होकर तद्रूप हो लेता है तब इसका रक्ताग्नि से पाक होता है ।।
- सामलक्षणः- अपक्व अन्नरस किं वा अपक्व प्रथम रस धातु से मिले हुए दोष- यथा वात , पित्त , कफ़ और दूष्य यथा रक्तादि धातु- साम कहे जाते हैं और इनसे उत्पन्न रोगों को ' सामरोग ' कहा जाता है ।।
- जब अन्नरस में नाना भौतिक आहार द्रव्यों के साथ- साथ गयी हुई भूताग्नियाँ , पाचकाग्नि के प्रभाव से प्रदीप्त होकर , उस अन्नरस को ' देहधातुओं का सजातीय ' बना देती हैं , तब वह अन्नरस ' देहपोषक रस ' कहलाता है ।।
- जब अन्नरस में नाना भौतिक आहार द्रव्यों के साथ- साथ गयी हुई भूताग्नियाँ , पाचकाग्नि के प्रभाव से प्रदीप्त होकर , उस अन्नरस को ' देहधातुओं का सजातीय ' बना देती हैं , तब वह अन्नरस ' देहपोषक रस ' कहलाता है ।।
- जब अन्नरस में नाना भौतिक आहार द्रव्यों के साथ- साथ गयी हुई भूताग्नियाँ , पाचकाग्नि के प्रभाव से प्रदीप्त होकर , उस अन्नरस को ' देहधातुओं का सजातीय ' बना देती हैं , तब वह अन्नरस ' देहपोषक रस ' कहलाता है ।।