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अन्योन्याभाव का अर्थ

[ aneyoneyaabhaav ]
अन्योन्याभाव उदाहरण वाक्य

परिभाषा

संज्ञा
  1. न्यायशास्त्र के अनुसार वह स्थिति जब हर एक वस्तु या व्यक्ति के गुणों का दूसरे में अभाव होता है या एक वस्तु नहीं हो सकती ऐसा भाव:"द्वैतवाद के अनुसार जीव और ईश्वर में अन्योन्याभाव है"
    पर्याय: इतरेतराभाव

उदाहरण वाक्य

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  1. इस प्रकार पृथक्त्व की प्रतीति भावात्मक है जबकि अन्योन्याभाव की प्रतीति अभावात्मक होती है।
  2. ' पत्थर पेड़ नहीं है ' , इस प्रकार के वाक्य में अन्योन्याभाव का प्रतिपादन है।
  3. दो वस्तुओं में तादात्म्य का जो अभाव होता है , उसको अन्योन्याभाव कहते हैं , जैसे घट पट नहीं है।
  4. वाचस्पति ने अभाव का मूलत : इन दो वर्गों में वर्गीकरण किया- तादात्म्यभाव ( इसी को अन्योन्याभाव भी कहते हैं ) तथा संसर्गाभाव।
  5. अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव दोनों ही त्रैकालिक अर्थात नित्य हैं , किन्तु अत्यन्ताभाव संयोगसमवाय- सम्बन्ध पर निर्भर है , जबकि अन्योन्याभाव तादात्म्य-सम्बन्ध पर आधारित है।
  6. अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव दोनों ही त्रैकालिक अर्थात नित्य हैं , किन्तु अत्यन्ताभाव संयोगसमवाय- सम्बन्ध पर निर्भर है , जबकि अन्योन्याभाव तादात्म्य-सम्बन्ध पर आधारित है।
  7. विश्वनाथ पंचानन ने अभाव के सर्वप्रथम दो भेद माने हैं- संसर्गाभाव और अन्योन्याभाव ; और संसर्गाभाव के तीन भेद किये हैं- प्रागभाव , प्रध्वंसाभाव तथा अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव।
  8. नव्यन्याय में परत्व , अपरत्व को विप्रकृष्टत्व और सन्निकृष्टत्व या ज्येष्ठत्व और कनिष्ठत्व में अन्तर्निहित मान लिया गया है और पृथक्त्व को अन्योन्याभाव का ही एक रूप बताया गया है।
  9. समवाय नामक छ : पदार्थों की गणना करके अभाव को अलग हसे पदार्थ माना गया है और उसके प्रागभाव , प्रध्वंसाभाव , अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभाव नामक चार भेद माने गये हैं।
  10. अन्योन्याभाव के आधार पर यह प्रतीति नहीं हो सकती , क्योंकि अन्योन्याभाव तो ' घट पट नहीं है ' आदि ऐसे उदाहरणों पर चरितार्थ होता है , जिनमें तादात्म्य का अभाव है।


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  8. अन्वय
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