अवैराग्य का अर्थ
[ avairaagay ]
अवैराग्य उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- किसी कर्म, समाज आदि से विरक्त न होने का भाव:"अविरक्ति के कारण ही हम मोह माया में जकड़े हुए हैं"
पर्याय: अविरक्ति, अविरति, विषायासक्ति, आसक्ति
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- अधर्म , अनैश्वर्य , अवैराग्य के मूल में अविद्या होती है।
- अधर्म , अनैश्वर्य , अवैराग्य के मूल में अविद्या होती है।
- अविद्या इसका विपरीत भाव-अधर्म , अज्ञान , अवैराग्य तथा अनैश्वर्य अथवा अविद्या , अस्मिता , राग-द्वेष , अभिनिवेश रूप है।
- अविद्या इसका विपरीत भाव-अधर्म , अज्ञान , अवैराग्य तथा अनैश्वर्य अथवा अविद्या , अस्मिता , राग-द्वेष , अभिनिवेश रूप है।
- धर्म - अधर्म , ज्ञान - अज्ञान , वैराग्य - अवैराग्य , ऐश्वर्य - अनैश्वर्य - ये आठ भाव प्रकृतिजनित बताए गए हैं ।
- प्रख्या ( ज्ञान) का चित्त सत्व की प्रधानता के कारणऐश्वर्य और शब्दादि विषयों की ओर आकृष्ट होता है, प्रवृत्तिशील चित्त रजकी प्रधानता के कारण धर्म, ज्ञान, वैराग्य तथा ऐश्वर्य से युक्त होता हैऔर स्थितिशील चित्त तम की प्रधानता के कारण अधर्म, अज्ञान अवैराग्य औरअनैश्वर्य में लिप्त होता है.