आभोग का अर्थ
[ aabhoga ]
आभोग उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- सरीसृप वर्ग का एक रेंगने वाला पतला और लंबा जीव जिसकी कई जातियाँ पायी जाती हैं:"प्रायः आई आई टी बॉम्बे में कई तरह के ज़हरीले साँप रेंगते हुए देखे जा सकते हैं"
पर्याय: साँप, सर्प, अहि, भुजंग, उरंग, व्याल, सारंग, विषधर, अघविष, पन्नग, अनिलाशी, अपत्यशत्रु, फुनिंग, दीर्घपृष्ठ, विषदंतक, शेव, विषदन्तक, दीर्घरसन, फणधर, विषानन, श्वसनाशन, श्वसनोत्सुक, दृक्कर्ण, द्विरसन, त्सरु, लांगली, भुअंग, भुअंगम, कर्कटी, फणिक, फणी, प्रबलाकी, पुलिरिक, मारुताशन, लेलिहान, प्रवलाकी, लेलिह, आशीविष, पवनाशी, पवनाश, पवनाशन, तार्क्ष्य, कुंडली, कुण्डली - किसी वस्तु के व्यवहार से सुख या मजा लेने की क्रिया:"इस कार्यालय के सभी पदाधिकारी कार्यालयी वस्तुओं का खूब उपभोग करते हैं"
पर्याय: उपभोग, सेवन, भोग, अनुभोग, सुख भोग - विधिक के क्षेत्र में, जो आपका नहीं हो ऐसे किसी सुख या सुभीते के भोग का विशेषाधिकार:"आभुक्ति प्राप्त किरायेदार आज भी मात्र सौ रूपए किराया देते हैं"
पर्याय: आभुक्ति - किसी पद्य के बीच में कवि के नाम का उल्लेख:"रीतिकालीन कवियों की रचनाओं में आभोग बहुत सामान्य था"
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- अब्दकोश आदि नाना रूपों में अपने आभोग का विस्तार करते चल
- बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है।
- बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है।
- बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है।
- कभी कभी ध्रुव और आभोग के बीच में भी पद होता था जिसे अंतरा कहते थे।
- इस गीत को साधा-~ रणतः चारभागों में बाँटा गया है जो स्थायी , अन्तरा, सच्चारी और आभोग कहलाते हैं.
- प्राचीन ध्रुपद में चारखन्ड-स्थाई , अन्तरा, सन्चारी और आभोग मिलते थे, किन्तु आजकल दो ही खंड स्थाई औरअंतरा के मिलते हैं.
- अन्य रूप पारिभाषिक शब्दकोश , विषयकोश, चरितकोश, ज्ञानकोश, अब्दकोश आदि नाना रूपों में अपने आभोग का विस्तार करते चल रहै हैं ।
- अन्य रूप पारिभाषिक शब्दकोश , विषयकोश, चरितकोश, ज्ञानकोश, अब्दकोश आदि नाना रूपों में अपने आभोग का विस्तार करते चल रहै हैं ।
- प्राचीन कालमें गीतों को पाँच भागों में बांटा जाता था और वे विभाग इस प्रकार थे- ( १) उद्ग्राह (२) मेलापक (३) ध्रुव (४) अन्तरा (५) आभोग.