ईश्वर-प्रणिधान का अर्थ
[ eeshevr-pernidhaan ]
ईश्वर-प्रणिधान उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- योग के पाँच प्रणिधानों में से एक जिसे प्रगाढ़ समाधि योग भी कहते हैं:"ईश्वरप्रणिधान में मनुष्य ईश्वर पर संपूर्ण श्रद्धा के साथ स्वयं को उसके चरणों में अर्पित कर देता है"
पर्याय: ईश्वरप्रणिधान, ईश्वर प्रणिधान
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- सत्त्व की पवित्रता ही ईश्वर-प्रणिधान है।
- ( च) ईश्वर-प्रणिधान - इश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा
- चिंता व तनावरहित जीवन का अमोघ उपाय हैः ईश्वर-प्रणिधान ( ईश्वर-आराधना ) ।
- ( ३) ईश्वर-प्रणिधा न - ईश्वर के शरणापन्न हो जाने का नाम भी 'ईश्वर-प्रणिधान' है।
- ( च ) ईश्वर-प्रणिधान - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण , पूर्ण श्रद्धा ( आर्यसमाज में ईश्वर की सत्ता को स्वीकार ही नहीं किया गया है )
- चित्त को स्थिर , अविचल करने वाले प्रयत्न ही `अभ्यास 'और ऐहिक तथा पारलौकिक भोगों से विमुक्त हो जाना ही` वैराग्य' है. समाधि लाभ के लिए ईश्वर-प्रणिधान अवाश्यक है.
- उसके नाम , रूप, लीला, धाम, गुण और प्रभाव आदि का श्रवण, कीर्तन और मनन करना, समस्त कर्मों को भगवान् के समर्पण कर देना, अपने को भगवन के हाथ का यन्त्र बनाकर उसकी आगया पर नाचना, उसकी आज्ञा का पालन करना, उसीमें अनन्य प्रेम करना - ये सभी ईश्वर-प्रणिधान के अंग हैं।
- सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक बन्धुओं ! स्वाध्याय की आवश्यकता एवं महत्ता को देखते हुए ही योग या अध्यात्म के आठ प्रमुख अंगों में से दूसरे अंग रूप नियम में चौथे उपाँग के रूप में या स्थान पर इस मानवता को स्थापित करने-कराने वाले विधाान रूप स्वाध्याय को पद स्थापित किया गया है , जिसके पश्चात् ही पाँचवें उपाँग के रूप में या पद पर ' ईश्वर-प्रणिधान ' नामक पद को स्थापित किया गया है जो अभी-अभी अगले अधयात्म वाले शीर्षक में देखा जायेगा।
- सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक बन्धुओं ! स्वाध्याय की आवश्यकता एवं महत्ता को देखते हुए ही योग या अध्यात्म के आठ प्रमुख अंगों में से दूसरे अंग रूप नियम में चौथे उपाँग के रूप में या स्थान पर इस मानवता को स्थापित करने-कराने वाले विधाान रूप स्वाध्याय को पद स्थापित किया गया है , जिसके पश्चात् ही पाँचवें उपाँग के रूप में या पद पर ' ईश्वर-प्रणिधान ' नामक पद को स्थापित किया गया है जो अभी-अभी अगले अधयात्म वाले शीर्षक में देखा जायेगा।