त्रसदस्यु का अर्थ
[ tersedseyu ]
त्रसदस्यु उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- एक वैदिक ऋषि:"त्रसदस्यु का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है"
पर्याय: त्रसदस्यु ऋषि
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- त्रसदस्यु केजन्मकाल में उसका पिता पुरुकुत्सु कैद में था .
- त्रसदस्यु भारी राजा था , उसे अर्धदेव कहा गया है (ऋ.
- ऋग्वेद [ 1] में त्रसदस्यु के पुत्र कुरुश्रवण का उल्लेख हुआ है।
- ई . ः. ई. पृष्ठ १३३) पुरुकुत्स कापुत्र त्रसदस्यु था, जो मन्त्रदृटा था.
- ४ . ३. १४) इसका पुत्र त्रसदस्यु, हर्यश्व (द्वितीय), वसुमान, त्रिधन्वा, औरत्रय्यारुण है.
- यह और इसके पुत्र त्रसदस्यु अपना गोत्र बदलकर अंगिरागोत्र में सम्मिलित हो गये .
- ऋग्वेद [ 18 ] में त्रसदस्यु के पुत्र कुरुश्रवण का उल्लेख हुआ है।
- वामनदेव ने कहा “ मैं ही मनु हूँ , मैं ही सूर्य हूँ ” कृष्ण ने कहा “ मैं ही सब कारणों का कारण हूँ ” महाराज त्रसदस्यु ने कहा “ मैं ही इंद्र और वरुण हूँ ” - तब यह सब अहंकार से नहीं , बल्कि आत्मानुभूति से बोल रहे हैं ।
- ब्रा . ५-१४. वैवस्वत मनु इक्ष्वाकु, विकुक्षि (शाशाद) पुरंजय (कुकुत्थ) अनेनस (५) पृथु विष्टराश्व, आर्द्र, युवनाश्व प्रथम, श्रीवस्त (१०) वृहदश्व, कुवलयाश्व दृढाश्व, प्रमोद, हर्यश्व (१५) निकुम्भ, संहताश्व, अकृशशाश्व, प्रसेनजित्, युवनाश्व (दूसेर २०), मान्धातृ, पुरुस्त, त्रसदस्यु, सम्भत, रुसक, (२५) वृक, ऋत, नाभाग, अम्बरीष् सिन्दु द्वीप (३०) शतरथ, विश्वशर्मन, विश्वसह (प्रथम) दिलीप, खष्टांग, दीर्घवाह (३५) रघु, अज, दशरथ, राम (३९).