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सत्य-नारायण का अर्थ

[ sety-naaraayen ]
सत्य-नारायण उदाहरण वाक्य

परिभाषा

संज्ञा
  1. हिन्दुओं के एक प्रमुख देवता जो सृष्टि का पालन करने वाले माने जाते हैं:"राम और कृष्ण विष्णु के ही अवतार हैं"
    पर्याय: विष्णु, नारायण, सत्यनारायण, रमाकांत, रमाकान्त, रमापति, रमानाथ, कमलापति, लक्ष्मीपति, लक्ष्मीकांत, लक्ष्मीकान्त, कमलेश, केशव, माधव, मधुसूदन, वैकुंठनाथ, बैकुंठनाथ, रमारमण, रमाधव, अच्युत, चक्रधर, चक्रपाणि, जगदीश, जगदीश्वर, जनार्दन, त्रिलोकीनाथ, त्रिविक्रम, रमानिवास, रमेश, विश्वंभर, विश्वम्भर, श्रीनिवास, हरि, अंबरीष, इंदिरा रमण, श्रीरमण, पुंडरीकाक्ष, असुरारि, अनीश, अन्नाद, गरुड़गामी, गरुड़ध्वज, वंश, महेंद्र, महेन्द्र, वासु, श्रीश, अब्धिशय, डाकोर, सहस्रजित्, सहस्रचरण, सहस्रचित्त, शारंगपाणि, शारंगपानि, अक्षर, अब्धिशयन, कमलनयन, कमलनाभि, कमलेश्वर, कैटभारि, खगासन, गजाधर, चक्रेश्वर, जनेश्वर, त्रिलोकेश, दामोदर, देवेश्वर, महाभाग, सुरेश, वारुणीश, व्यंकटेश्वर, शेषशायी, श्रीकांत, श्रीकान्त, श्रीनाथ, श्रीपति, अम्बरीष, सर्वेश्वर, सारंगपाणि, हृषिकेश, हृषीकेश, हिरण्यकेश, वसुधाधर, बाणारि, हिरण्यगर्भ, वीरबाहु, कमलनाभ, पद्मनाभ, पद्म-नाभ, स्वर्णबिंदु, स्वर्णबिन्दु, अमरप्रभु, शतानंद, शतानन्द, धंवी, धन्वी, महाक्ष, महानारायण, महागर्भ, सुप्रसाद, खरारि, खरारी, विश्वधर, विश्वनाभ, विश्वप्रबोध, विश्वबाहु, विश्वगर्भ, विश्वकाय, धातृ, धाम, विधु, रत्ननाभ, जगन्, विभु, दम, सर्व, फणितल्पग, शिखंडी, शिखण्डी, वर्द्धमान, वर्धमान, कुंडली, कुण्डली, जगद्योनि, शुद्धोदनि, देवाधिदेव, चिरंजीव, अमृतवपु, अरविंद नयन, अरविन्द नयन, अरुणज्योति, अरुण-ज्योति

उदाहरण वाक्य

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  1. पर सत्य-नारायण ने उन्हें पहले से
  2. है , और वह है प्रतिक्षण सत्य-नारायण की वाणी का अनुसरण करने की मेरी
  3. वो तो सत्य-नारायण कथा की पोथी हाथ में थी तो पढ़ दिया . ..
  4. और व्यक्तिगत प्रयत्न करने की शक्ति तो सत्य-नारायण ने सबको जन्म से ही दी है ।
  5. सत्य-नारायण की कथाओं और भगवे चोलों ने जीवन की किसी तर्कसंगत सोच को कभी उभरने नहीं दिया।
  6. सत्य-नारायण की कथाओं और भगवे चोलों ने जीवन की किसी तर्कसंगत सोच को कभी उभरने नहीं दिया।
  7. सत्य-नारायण की कथाओं और भगवे चोलों ने जीवन की किसी तर्कसंगत सोच को कभी उभरने नहीं दिया।
  8. ऐसे व्यापक सत्य-नारायण के प्रत्यक्ष दर्शन के लिए जीवनमात्र के प्रति आत्मवत् प्रेम की परम आवश्यकता है ।
  9. मुझे एक ही बात की चिन्ता है , और वह है प्रतिक्षण सत्य-नारायण की वाणी का अनुसरण करने की मेरी तत्परता।
  10. मुझे एक ही बात की चिन्ता है , और वह है प्रतिक्षण सत्य-नारायण की वाणी का अनुसरण करने की मेरी तत्परता।


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