अकर्मा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इस रूप में , मैं -कारणों का कारण , कारण ब्रह्म हूं , जो अगुण , अक्रिय , अकर्मा , अविनाशी , सबसे परे-परात्पर एवं केवल द्रिष्टा -सब द्रष्टियों की द्रष्टि- हूं।
- कबीर गाते हैं … . “ हरि मोरे पीउ मैं हरि की बहुरिया … ” … अर्थात मूल-ब्रह्म पुरुष-रूप है अकर्मा , परन्तु जीव रूप में ब्रह्म ( मैं ) मूलत : … स्त्री-भाव है ताकि संतुलन रहे।
- पुरुष या ब्रह्म या ईश्वर स्वयं अकेला कहाँ कार्य कर पाता है , वह तो अकर्मा है कार्य तो प्रकृति ही करती है | अवतार भी प्रकृति , शक्ति , योगमाया द्वारा ही कार्य कराते हैं | ड़ा शर्मा बोले |
- वेदों व गीता के अनुसार शुद्ध-ब्रह्म या पुरुष अकर्मा है , मायालिप्त जीव रूप में पुरुष कर्म करता है | माया व प्रकृति की भांति ही स्त्री- स्वयं कार्य नहीं करती अपितु पुरुष को अपनी ओर खींचकर, सहज़ व शान्त करके कार्य कराती है परन्तु स्वयं कार्य करती हुई भाषती है, प्रतीत होती है।
- वेदों व गीता के अनुसार शुद्ध-ब्रह्म या पुरुष अकर्मा है , मायालिप्त जीव रूप में पुरुष कर्म करता है | माया व प्रकृति की भांति ही स्त्री- स्वयं कार्य नहीं करती अपितु पुरुष को अपनी ओर खींचकर , सहज़ व शान्त करके कार्य कराती है परन्तु स्वयं कार्य करती हुई भाषती है , प्रतीत होती है।
- वेद के इन परम वचनों के साथ हम अपनी बात का उपसंहार करते हैं - अकर्मा दस्यु : इस जगत में कर्महीन आलसी व्यक्ति दस्यु ( लुटेरा ) होता है तथा मा व स्तेनऽईशत माऽघशंस : ( यजु 0 - 1 / 1 ) चोर , डाकू , लुटेरे और इनके प्रशंसक तथा समर्थक हमारे ऊपर शासन न करें।
- जो भगवान अकर्मा होते हुये भी अपनी लीला विलास के लिये योगमाया द्वारा इस संसार की श्रृष्टि रच कर लीला करते हैं , जिनका श्यामवर्ण है, जिनका तेज करोड़ों सूर्यों के समान है, जो पीताम्बरधारी हैं तथा चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म कण्ठ में कौस्तुभ मणि और वक्षस्थल पर वनमाला धारण किये हुये हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में मेरा मन समर्पित हो।
- जो भगवान अकर्मा होते हुये भी अपनी लीला विलास के लिये योगमाया द्वारा इस संसार की श्रृष्टि रच कर लीला करते हैं , जिनका श्यामवर्ण है , जिनका तेज करोड़ों सूर्यों के समान है , जो पीताम्बरधारी हैं तथा चारों भुजाओं में शंख , चक्र , गदा , पद्म कण्ठ में कौस्तुभ मणि और वक्षस्थल पर वनमाला धारण किये हुये हैं , ऐसे भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में मेरा मन समर्पित हो।