अतिथिसेवा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- वारुणी उपनिषद् में विशुद्ध ब्रह्मज्ञान का निरूपण है जिसकी उपलब्धि के लिये प्रथम शिक्षावल्ली में साधनरूप में ऋत और सत्य , स्वाध्याय और प्रवचन, शम और दम, अग्निहोत्र, अतिथिसेवा श्रद्धामय दान, मातापिता और गुरुजन सेवा और प्रजोत्पादन इत्यादि कर्मानुष्ठान की शिक्षा प्रधानतया दी गई है।