अनन्यभाव का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जिसका भगवान् के नाममें अटूट श्रद्धा-विश्वास है , अनन्यभाव है , उसका एक ही नामसे कल्याण हो जाता है ।
- Û व्रत के अनुष्ठान काल में संकल्प की दृढ़ता , नियम-पालन की कठोरता , पूर्ण श्रद्धा और अनन्यभाव अत्यंत आवश्यक शर्त है।
- इस प्रकार जब हम ब्रहृ या गुरु की अनन्यभाव से भक्ति करेंगे तो हमें उनसे अभिन्नता की प्राप्ति होगी और आत्मानुभूति की प्राप्ति सहज हो जायेगी ।
- श्री कृष्ण शरणम ममः ॥ जय श्री कृष्णा ॥ भगवान श्री कृष्ण परमब्रह्म पुरुषोत्तम हैं , उनकी अनन्यभाव से भक्ति करने वाले जीवों का सर्व विधि कल्याण है।
- इसपर कोई यह कहे कि हमारा दूसरोंका खण्डन करनेमें तात्पर्य नहीं है , हम तो अपनी उपासनाको दृढ़ करते हैं , अपना अनन्यभाव बनाते हैं , तो इसका उत्तर यह है कि दूसरोंका खण्डन करनेसे अनन्यभाव नहीं बनाता ।
- इसपर कोई यह कहे कि हमारा दूसरोंका खण्डन करनेमें तात्पर्य नहीं है , हम तो अपनी उपासनाको दृढ़ करते हैं , अपना अनन्यभाव बनाते हैं , तो इसका उत्तर यह है कि दूसरोंका खण्डन करनेसे अनन्यभाव नहीं बनाता ।
- यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है , क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है अर्थात् उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है।
- इन प्रपत्तिभाव प्रधान भक्तों ने विष्णु , वासुदेव या नारायण तथा उनके अवतार राम और कृष्ण के प्रति अनन्यभाव का प्रेम प्रकट किया है तथा कृष्ण और गोपियों की आनन्द-क्रीड़ाओं का तन्मयतापूर्वक वर्णन करते हुए उनके प्रति दास्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव की भक्ति प्रकट की है।
- इन प्रपत्तिभाव प्रधान भक्तों ने विष्णु , वासुदेव या नारायण तथा उनके अवतार राम और कृष्ण के प्रति अनन्यभाव का प्रेम प्रकट किया है तथा कृष्ण और गोपियों की आनन्द-क्रीड़ाओं का तन्मयतापूर्वक वर्णन करते हुए उनके प्रति दास्य , वात्सल्य और माधुर्य भाव की भक्ति प्रकट की है।
- यह एक प्रकार का लड़कपन है और लड़कपन समझकर भगवान् अप्रसन्न नहीं होते और यों सकाम भावना से आर्तिनाश , अर्थप्राप्ति आदि के लिये भी अनन्यभाव से केवल भगवान् से ही प्रार्थना करते रहने परभगवान् अपने सहज दयालु शील-स्वभाववश उसकी सकामता का हरण करके अन्त में उसे अपनी निष्काम भक्ति देकर अपनी प्राप्ति करा देते हैं - कैसे भी भजे , भगवान् को भजने वाला अन्त में भगवान् को पा जाता है - ‘ मद्भक्ता यान्ति मामपि। '