आज्य का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- नराशंस प्रयाजयाग में आज्य अग्नि में ‘ ये यजामहे ' नराशंसो अग्न आजय वेतु 3 वो 3 षट ' मन्त्र पढ़कर छोड़ा जाता है।
- उपयमनी से धर्मपात्र में आज्य लेने का कहा गया है-उपयमन्यासिञ्चति धर्मे ( का . श्रौ . 26.6 .1 ) वाचस्पत्यम् में इसका सम्बंध अग्न्याधान स बताया गया है- अग्याधानाङ्ग सिकतादौ ।
- जब अग्नि में आज्य अथवा अन्य उपयोगी शाकल्य द्रव्य आहुत किये जाते हैं , उनके दग्ध होने पर दूर अवस्थित व्यक्ति को विशेष प्रकार की सुगन्ध का स्पष्ट अनुभव होता है ।
- आज्यस्थाली में से स्रुवा आज्य जुहू में आठ स्रुवा उपभृत में और चार स्रुवा ध्रुवा में भरने को कहा गया है- स्रुवेणाज्यग्रहणं चतुर्जुह्ना . . . . । अष्टावुपभूति . . ।
- इसमें स्रुवा से आज्य लेकर अग्निहोत्र किया जाता है , जिससे यह अग्निहोत्र-हवणी कही जाती है- स्फ्यशच कपालानि चाऽगिहोत्रहवर्णी च शूर्पं च कृष्णजिनं च शय्या चोलूखलं च मुसलं च दृषच्चोपला चैतानि वै दश यज्ञायुधानि ...
- जल समबंधी मूत्र लवण समुद्र नाम से पुकारा जाता है तो थूक क्षीर समुद्र , कफ सुरा सिंधु समुद्र, मज्जा आज्य समुद्र, लार इक्षु समुद्र, रक्त दधि समुद्र, मुंह में उत्पन्न होनेवाला जल शुदार्नव नाम से जाने जाते हैं।
- यदि हम यज्ञादि अनुष्ठान करके आज्य एवं अन्य विविध सामग्री को अग्नि के द्वारा उन देवों कर पहुँचाते रहते हैं , तो वे उन जीवन शक्तियों को अधिक और उत्तम रूप से उत्पन्न करने में समर्थ रहते हैं ।
- जल समबंधी मूत्र लवण समुद्र नाम से पुकारा जाता है तो थूक क्षीर समुद्र , कफ सुरा सिंधु समुद्र , मज्जा आज्य समुद्र , लार इक्षु समुद्र , रक्त दधि समुद्र , मुंह में उत्पन्न होनेवाला जल शुदार्नव नाम से जाने जाते हैं।
- जुहू का आज्य समाप्त होने पर इसके आज्य को जुहू में लेकर आहुति दी जाती है- आश्वत्क्ष्युपभृत ( का . श्रौ . 1.3.3.6 ) आज्यस्थाली में से चार स्रुवा आज्य जुहू में आठ स्रुवा उपभृत में और चार स्रुवा धु्रवा में रखने का विधान है ।
- जुहू का आज्य समाप्त होने पर इसके आज्य को जुहू में लेकर आहुति दी जाती है- आश्वत्क्ष्युपभृत ( का . श्रौ . 1.3.3.6 ) आज्यस्थाली में से चार स्रुवा आज्य जुहू में आठ स्रुवा उपभृत में और चार स्रुवा धु्रवा में रखने का विधान है ।