त्रस का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इस लोक में जितने भी त्रस जीव ( एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको।
- नो तेसिमारभे दंडं मणसा वयसा कायसा चेव॥ संसार में जितने भी त्रस और स्थावर जीव हैं , उन्हें न तो शरीर से, न वचन से और न मन से दंड दो।
- बंधइ पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ जो आदमी चलने में असावधानी बरतता है , बिना ठीक से देखे-भाले चलता है, वह त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है।
- बंधइ पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ जो आदमी भोजन करने में असावधानी बरतता है , ठीक से देखे-भाले बिना भोजन करता है, वह त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है।
- इस लोक में जितने भी त्रस जीव ( एक , दो , तीन , चार और पाँच इंद्रिय वाले जीव ) आदि की हिंसा मत कर , उनको उनके पथ पर जाने से न रोको।
- बंधइ पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ॥ जो आदमी बैठने में असावधानी बरतता है , ठीक से देखे-भाले बिना बैठता है, वह त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है, ऐसा आदमी कर्मबंधन में फँसता है।
- जो न हिंसइ तिविहेण तं वयं बूम माहणं ॥ महावीरजी कहते हैं कि जो इस बात को जानता है कि कौन प्राणी त्रस है , कौन स्थावर है और मन, वचन और काया से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता, उसी को हम ब्राह्मण कहते हैं।
- यह क्या बात हुई कि स्थावर पेड-पौधों और त्रस पशुओं दोनों में जीवन है , दोनो में हिंसा है तो इन दोनों में से जो हिंसा अधिक क्रूर व वीभत्स हत्या हो , जहां स्पष्ट आर्तनाद व अत्याचार दृष्टिगोचर होता हो , उसमें भी अधिक क्रूरतम वीभत्स हिंसा का चुनाव करना चाहिए।
- ते जाणमजाणं वा न हणे नो विघायए॥ हिंसा के बारे में महावीरजी ने कहा है इस लोक में जितने भी त्रस जीव ( दो, तीन, चार और पाँच इंद्रिय वाले जीव अपनी इच्छा से चल-फिर सकते हैं, डरते हैं, भागते हैं, खाना ढूँढते हैं) और स्थावर जीव (एक इंद्रिय वाले, स्पर्श इंद्रिय वाले जीव।
- आप कहना क्या चाहते है , स्थावर पेड-पौधों और त्रस पशुओं दोनों में जीवन है दोनो में हिंसा है तो इन दोनों में से जो अधिक क्रूर व वीभत्स हत्या हो , जहां स्पष्ट अत्याचार व आर्तनाद दृष्टिगोचर होता हो , उसमें से अधिक क्रूरतम का चुनाव करके , वीभत्स हत्या और हिंसा को ही अपनाना चाहिए ? यह तो उद्दंड धृष्टता है।