नामकर्म का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ये बयालीस प्रकृतियाँ ही नामकर्म के भेद ( प्रकार ) कहे जाते हैं।
- यह नामकर्म अशरीरित्व ( सूक्ष्मत्व ) गुण का घात करता है * ।
- नामकर्म के विशेष विवेचन के पूर्व सर्वप्रथम उसका स्वरूप जान लेना भी आवश्यक है।
- इनमें शरीर नामकर्म के अन्तर्गत शरीर के पाँच भेदों का निरूपण विशेष दृष्टव्य है।
- गति नामकर्म के मुख्य भेद नरक , तिर्यंच (पशुपक्षी), मनुष्य और देव ये चार हैं।
- विहायोगति - जिसके उदय से आकाश में गमन हो उसे विहायोगति नामकर्म कहते हैं।
- दो से लेकर सोलह कारणों के विकास से भी तीर्थंकर नामकर्म का बंध होता है।
- निमान ( निर्माण ) नामकर्म - निश्चित मान ( माप ) को निमान कहते हैं।
- · स्त्रियों के जातकर्म एवं नामकर्म आदि संस्कारों में वेद मंत्रों का उच्चारण नहीं करना चाहिए।
- ८ स्त्रियों के जातकर्म एवं नामकर्म आदि संस्कारों में वेद मन्त्रों का उच्चारण नहीं करना चाहिए।