वृषाकपि का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कुछ बाद के दो श्लोकों में बताया गया है कि ‘ वृष ' का अर्थ धर्म है और प्रजापति-कश्यप ने मुझे ( वासुदेव को ) ‘ वृषाकपि ' कहा है।
- हे इंद्र ! तुम अत्यंतगमनशील होकर वृषाकपि के पास जाते हो , सोम के लिए नहीं | ' कुछ स्थानों पर वृषाकपि इंद्र का अनुचर व पुत्र भी कहा गया है
- हे इंद्र ! तुम अत्यंतगमनशील होकर वृषाकपि के पास जाते हो , सोम के लिए नहीं | ' कुछ स्थानों पर वृषाकपि इंद्र का अनुचर व पुत्र भी कहा गया है
- 2 ) , अग्नि का जन्म (5।11), श्यावाश्व (5।32), बृहस्पति का जन्म (6।71), राजा सुदास (7।18), नहुष (7।95), अपाला (8।91), नाभानेदिष्ठ (10।61।62), वृषाकपि (10।86), उर्वशी और पुरूरवा (10।95), सरमा और पणि (10।108), देवापि और शंतनु (10।98), नचिकेता (10।135),।
- विष्णु सहस्रनाम में विष्णु का एक नाम वृषाकपि है , शायद परवर्ती वैदिक काल में विष्णु , इंद्र से प्रभावशाली देवता होते जा रहे थे , कहीं कहीं उनको इंद्र का छोटा भ्राता भी कहा गया है |
- वृषाकपि कोई आदिम आर्य अथवा आर्यतर लोक धर्म का देवता था- उसकी इन्द्र के साथ की मैत्री यह दर्शाती है कि वह आर्य-देवमण्डल में प्रवेश पा रहा था , जो इन्द्र एवं इन्द्राणी के संवाद के रूप में स्पष्ट दिखता है।
- स्तोताओं से मैंने सोम अभिषुत को कहा था | वृषाकपि की स्तुति की गयी - ‘ सोम से प्रवृद्ध होकर इस यज्ञ में वृषाकपि जैसे वीर सखा होकर , सोमपान कर हष्ट-पुष्ट हुए , मैं इंद्र सर्वश्रेष्ठ हूँ | ' इंद्राणी का कथन है-
- स्तोताओं से मैंने सोम अभिषुत को कहा था | वृषाकपि की स्तुति की गयी - ‘ सोम से प्रवृद्ध होकर इस यज्ञ में वृषाकपि जैसे वीर सखा होकर , सोमपान कर हष्ट-पुष्ट हुए , मैं इंद्र सर्वश्रेष्ठ हूँ | ' इंद्राणी का कथन है-
- कुंडली में लगन को नारायण और अलावा भावों को ग्यारह रुद्रों के रूप में जाना जाता है , उनके नाम इस प्रकार से हैं -अजैकपात , अहिर्बुन्ध , कपाली , हर , बहुरुप , त्र्यम्बक , अपाराजित , वृषाकपि , शम्भु , कपर्दी और रैवत ।
- कुंडली में लगन को नारायण और अलावा भावों को ग्यारह रुद्रों के रूप में जाना जाता है , उनके नाम इस प्रकार से हैं -अजैकपात , अहिर्बुन्ध , कपाली , हर , बहुरुप , त्र्यम्बक , अपाराजित , वृषाकपि , शम्भु , कपर्दी और रैवत ।