अस्पृष्ट का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जो कली खिलेगी जहाँ , खिली , जो फूल जहाँ है , जो भी सुख जिस भी डाली पर हुआ पल्लवित , पुलकित , मैं उसे वहीं पर अक्षत , अनाघ्रात , अस्पृष्ट , अनाविल , हे महाबुद्ध ! अर्पित करती हूँ तुझे।
- यह अक्षर ब्रह्मरूप भगवदात्मा सर्व धर्मों से अस्पृष्ट ही रहता है , इस तरह भगवान सर्वजगत रूप रहने पर भी उच्चावच सर्व प्रकार की लीलाओं को काते रहने पर भी अपने स्वरूप में- लीला में पांचों प्रकार के दोषों का सम्बन्ध न होने देने के लिये विविध अनन्त शक्तियों का आविर्भाव करते हैं।
- इसके लिए महाराज कश्मीर के पुस्तकालय की कल्पना की , जिसका सूचीपत्र डॉक्टर स्टाइन ने बनाया हो , वहाँ पर कालिदास के कल्पित काव्य की कल्पना , कालिदास के विक्रम संवत चलाने वाले विक्रम के यहाँ होने की कल्पना , तथा यवनों के अस्पृष्ट ( यवन माने मुसलमान ! भला यूनानी नहीं ) समय में हिन्दूपद के प्रयोग की कल्पना ; कितना दुःख तुम्हारे कारण उठाना पड़ता है।
- * इतना सब कुछ होने पर भी यदि कोई अनाघात , अनास्वादित , अदृष्ट , अस्पृष्ट एवं अश्रुत जीव का समादर करता हुआ स्वर्ग एवं अपवर्ग आदि सुख की समीहा से विभ्रम वश सिर एवं दाढ़ी के केशों का मुण्डन करवाकर , अत्यन्त दुरूह व्रतों का धारण कर , कठिन तपश्चर्या कर , अत्यधिक दु : सह प्रखर [[ सूर्य ]] के ताप को सहन कर इस दुर्लभ मानव जन्म को नीरस बनाता है तो वह वास्तव में महामोह के दुष्चक्र में घिरा दया का ही पात्र कहा जा सकता है।
- * इतना सब कुछ होने पर भी यदि कोई अनाघात , अनास्वादित , अदृष्ट , अस्पृष्ट एवं अश्रुत जीव का समादर करता हुआ स्वर्ग एवं अपवर्ग आदि सुख की समीहा से विभ्रम वश सिर एवं दाढ़ी के केशों का मुण्डन करवाकर , अत्यन्त दुरूह व्रतों का धारण कर , कठिन तपश्चर्या कर , अत्यधिक दु : सह प्रखर [[ सूर्य ]] के ताप को सहन कर इस दुर्लभ मानव जन्म को नीरस बनाता है तो वह वास्तव में महामोह के दुष्चक्र में घिरा दया का ही पात्र कहा जा सकता है।