द्वारकानाथ ठाकुर वाक्य
उच्चारण: [ devaarekaanaath thaakur ]
उदाहरण वाक्य
- मैं-“ यानी आप रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जैसा साहित्यिक हिंदी मे नही देखना चाहते, प्रिंस द्वारकानाथ ठाकुर का नाती या बोबुल-पुरस्कार-प्राप्त मनुष्य देखना चाहते है, यह?”
- मैं-” यानी आप रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जैसा साहित्यिक हिंदी मे नही देखना चाहते, प्रिंस द्वारकानाथ ठाकुर का नाती या बोबुल-पुरस्कार-प्राप्त मनुष्य देखना चाहते है, यह?”
- और हम यह भी विश्वास कर सकते हैं कि भारत व इंग्लैंड में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपनी वर्तमान सफलता और स्वतंत्रता के लिए द्वारकानाथ ठाकुर के अनुग्रह के प्रति कृतज्ञ न हों।
- और हम यह भी विश्वास कर सकते हैं कि भारत व इंग्लैंड में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपनी वर्तमान सफलता और स्वतंत्रता के लिए द्वारकानाथ ठाकुर के अनुग्रह के प्रति कृतज्ञ न हों।
- देवेन्द्रनाथ ठाकुर अथवा ' देवेन्द्रनाथ टैगोर ' (जन्म: 15 मई, 1817-मृत्यु: 19 जनवरी, 1905) कलकत्ता निवासी श्री द्वारकानाथ ठाकुर के पुत्र थे, जो प्रख्यात विद्वान और धार्मिक नेता थे।
- इस प्रकार आठ-दस वर्ष चलने के पश्चात् ऐसा समय आया जब राममोहन राय और उनके सहयोगी श्री द्वारकानाथ ठाकुर, कालीनाथ मुंशी, प्रसन्न्कुमार ठाकुर आदि ने निश्चय किया कि इस संस्था को स्थायी रूप प्रदान किया जाये।
- यहां हमारे लिये इतना ही काफी है कि ठाकुर परिवार (रवीन्द्रनाथ के दादा प्रिंस द्वारकानाथ ठाकुर, पिता महर्षी देवेन्द्रनाथ ठाकुर और रवीन्द्रनाथ सहित उनके सभी भाई-बंदों का विषाल परिवार) इस पूरे नवजागरणकालीन विमर्श का एक अभिन्न हिस्सा था।
- द्वारकानाथ ठाकुर के सबसे बड़े पुत्र देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने मात्र 18 वर्ष की आयु में गंगा-तट पर अपनी मौत के लिए प्रतीक्षारत दादी के सान्निध्य में रहते हुए जीवन के सत्य की प्राप्ति कर ली थी और उसके बाद भौतिक चकाचौंध से दूर वे अध्यात्म की ओर उन्मुख हो गए।
- द्वारकानाथ ठाकुर के सबसे बड़े पुत्र देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने मात्र 18 वर्ष की आयु में गंगा-तट पर अपनी मौत के लिए प्रतीक्षारत दादी के सान्निध्य में रहते हुए जीवन के सत्य की प्राप्ति कर ली थी और उसके बाद भौतिक चकाचौंध से दूर वे अध्यात्म की ओर उन्मुख हो गए।
- तभी तो उनके दादा द्वारकानाथ ठाकुर की मौत पर लंदन के प्रतिष्ठित ष्द टाइम्सष् ने 3 अगस्त 1946 को लिखा कि-श् संभवतया भारत में द्वारकानाथ ठाकुर की टक्कर का कोई नहीं है, भले ही वह किसी पद या प्रतिष्ठा पर हो, जिसने अपने आस-पास खड़े लोगों की प्रगति और बेहतरी को इतनी उदारता से संरक्षण दिया हो।