नन्ददास वाक्य
उच्चारण: [ nendedaas ]
उदाहरण वाक्य
- मुक्तिबोध ने भक्ति आन्दोलन पर विचार करते समय लिखा है ” उत्तर भारत में नन्ददास वगैरह कृष्णभक्तिवादी सन्तों की निर्गुण विरोधी भावना तो स्पष्ट ही है और ये सब लोग उच्चकुलोद्भव थे।
- इस विडिओ में बाबाजी शास्त्रों से यमुनाजी का प्राकाट्य, और गोस्वामी वल्लभाचार्य जी, गोस्वामी नन्ददास जी, गोस्वामी श्री हरिराइ जी इत्यादि सन्तों की वाणी से यमुनाजी का सब माहात्म्य वर्णना करते हैं.
- आप अष्टछाप के कवियों कुम्भनदास (१४६८ ई.-१५८२ ई.), सूरदास (१४७८ ई.-१५८० ई.), कृष्णदास (१४९५ ई.-१५७५ ई.), परमानन्ददास (१४९१ ई.-१५८३ ई.), गोविन्ददास (१५०५ ई.-१५८५ ई.), छीतस्वामी (१४८१ ई.-१५८५ ई.), नन्ददास (१५३३ ई.-१५८६ ई.) और चतुर्भुजदास से अवश्य ही परिचित होंगे।
- आ प अष्टछाप के कवियों कुम्भनदास (१४६८ ई.-१५८२ ई.), सूरदास (१४७८ ई.-१५८० ई.), कृष्णदास (१४९५ ई.-१५७५ ई.), परमानन्ददास (१४९१ ई.-१५८३ ई.), गोविन्ददास (१५०५ ई.-१५८५ ई.), छीतस्वामी (१४८१ ई.-१५८५ ई.), नन्ददास (१५३३ ई.-१५८६ ई.) और चतुर्भुजदास से अवश्य ही परिचित होंगे।
- अष्टछाप के महासंगीतज्ञ कवि [[सूरदास]], [[नंददास | नन्ददास]], [[परमानन्ददास]] जी आदि भी इसी काल में प्रसिद्ध कीर्तनकार, कवि और गायक हुए, जिनके कीर्तन बल्लभकुल के मन्दिरों में गाये जाते हैं ।
- केवल नन्ददास ने अपने ' भँवरगीत' में उद्धव को एक अद्वैत वेदान्त के सर्मथक ज्ञानमार्गी पण्डित के रूप में उपस्थित किया है जो न केवल गोपियों की उत्कट प्रेम-भक्ति, बल्कि उनके पाण्डित्यपूर्ण तर्कों का लोहा मानकर भक्तिमार्ग में दीक्षित हो जाते हैं।
- भले ही कृष्णदास ने उच्चकोटि की काव्यरचना न की हो, उन्होंने अपने प्रबन्ध-कौशल द्वारा परिस्थितियों के निर्माण में अवश्य महत्त्वपूर्ण योग दिया, जिनके कारण सूरदास, परमानन्ददास, नन्ददास आदि महान कवियों को अपनी प्रतिभा का विकास करने के लिए अवसर मिला।
- वे सूरदास, नन्ददास आदि कृष्णभक्तों की भांति जन-सामान्य से संबंध-विच्छेद करके एकमात्र आराध्य में ही लौलीन रहने वाले व्यक्ति नहीं कहे जा सकते बल्कि उन्होंने देखा कि तत्कालीन समाज प्राचीन सनातन परंपराओं को भंग करके पतन की ओर बढ़ा जा रहा है।
- भले ही कृष्णदास ने उच्चकोटि की काव्यरचना न की हो, उन्होंने अपने प्रबन्ध-कौशल द्वारा परिस्थितियों के निर्माण में अवश्य महत्त्वपूर्ण योग दिया, जिनके कारण सूरदास, परमानन्ददास, नन्ददास आदि महान कवियों को अपनी प्रतिभा का विकास करने के लिए अवसर मिला।
- केवल नन्ददास ने अपने ' भँवरगीत ' में उद्धव को एक अद्वैत वेदान्त के सर्मथक ज्ञानमार्गी पण्डित के रूप में उपस्थित किया है जो न केवल गोपियों की उत्कट प्रेम-भक्ति, बल्कि उनके पाण्डित्यपूर्ण तर्कों का लोहा मानकर भक्तिमार्ग में दीक्षित हो जाते हैं।