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अनलहक वाक्य

उच्चारण: [ anelhek ]

उदाहरण वाक्य

  1. मेरे लेख का मतलब बस इतना था कि भगवान कमजोरों की भाषा है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके भाग्यवादी रूख छोड़कर अनलहक के भौतिकवादी रूप को स्वीकार कर लें … और जहां तक सवाल राजनीतिज्ञों का है..
  2. उसके कोई पुराने आइडियाज नहीं हैं, अगर वह पुराना कुछ लेते थे, जैसे अनलहक (मैं खुदा हूँ), तो वह भी ऐसा है जिसके लिये कहते हैं कि पूरी डेमोक्रेसी है, खल्क-ए-खुदा जो है वह खुदा है ।
  3. बस नाम रहेगा अल्लाह का जो गायब भी है हाजिर भी जो नाजिर भी है मंज़र भी उठेगा अनलहक का नारा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो और राज करेगी ख़ल्क-ए-ख़ुदा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो हम देखेंगे.......
  4. गुरुजी कहते है-आत्मा की तार्तवेक एकता ईश्वर के साथ होने से वह पूर्णता को प्राप्त करने हेतु चेतना के माध्यम से उत्तरोत्तर ब्राह्मी अवस्था में अवस्थित होने का प्रयास करती है और पूर्णता प्राप्त होने पर अनलहक अथवा “अहम ब्रह्मास्मि” की अवस्था हो जाती है।
  5. भय की जगह प्रेम का नारा बुलंद कर के मानव मुक्ति की एक राह खोजनी चाही थी, जिस में बन्दा खुदा के आगे समर्पण नहीं करता खुद खुदा हो जाता है. अनलहक. फैज़ ने इस मज़मून को अपने समय के सन्दर्भ में नए मानी दिए.
  6. साहिर के ' वो सुबह हमीं से आयेगी', 'वो सुबह कभी तो आयेगी' और 'ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया' और फैज़ के 'मुझसे पहली सी मुहब्बत'और 'हम देखेंगे (अहम् ब्रह्मास्मि के परवर्ती संस्करण अनलहक और उसके विरोधी इस्लाम मत की मान्यताओं का समाजवादी घालमेल)' और कुछेक प्रगतिवादी कवितायें।
  7. महात्मा ईसा ने धर्म के लिए प्राण देने में सी तक नहीं की, मंसूर वेदान्त वादी (सूफी) था, उसको इसलिए फाँसी दी गयी कि वह अहं ब्रह्म (अनलहक) कहा करता था, परन्तु उसको इसकी तनिक परवाह नहीं हुई, वह समझता था प्रेम एव परोधर्म: ।
  8. मियाँ, ये वो क़यामत नहीं है, जो अल्ला मियाँ ने किसी लौहे अज़ल पे लिख रखी है.ये क़यामत वो है, जो उन के बूते आनी है, जिन्हें अनलहक का नारा उठाना है, ' जो मैं भी हूँ और तुम भी हो '.कभी इस नज़्म पर प्रणय को पढ़ना.लिंक है-
  9. बस नाम रहेगा अल्ला का जो गायब भी हाजर भी जो नाजिर भी है मंजर भी उठेगा अनलहक का नारा जो मैं भी हूं और तुम भी हो और राज करेगी ख़ल्के खुदा जो मैं भी हूं और तुम भी हो हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे हम देखेंगे-फैज अहमद ' फैज '
  10. उन्होंने हिन्दू धर्म के अतिरिक्त उस समय प्रचलित सभी सम्प्रदायों जैन, बोद्ध के साथ ही इस्लाम के तरीकों से भी उस परमात्मा को पाने का प्रयास किया……… और सफल रहे और तब उन्होंने उद्घोष किया की आप किसी भी धर्म या पंथ को माने पर अंत में आप एक ही परमात्मा को पाते हैं…………… हमारे संतों ने अहम ब्रह्मास्मि कहा तो इस्लाम में सूफी फकीरों ने अनलहक का उद्घोष किया……. दोनों का शाब्दिक अर्थ एक ही है……..
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