अविद्य का अर्थ
[ avidey ]
अविद्य उदाहरण वाक्य
परिभाषा
विशेषण- जिसे बुद्धि न हो या बहुत कम हो या जो मूर्खतापूर्ण आचरण करता हो:"मूर्ख लोगों से बहस नहीं करनी चाहिए"
पर्याय: मूर्ख, बेवकूफ़, मूढ़, बुद्धू, जड़, उज़बक, उजबक, भोंदू, गँवार, नासमझ, नादान, अज्ञानी, बुद्धिहीन, बुधंगड़, मूरख, उजड्ड, भुच्च, भुच्चड़, अहमक, अहमक़, बावला, बावरा, पोंगा, अंध, अन्ध, अचतुर, अचेत, अज्ञान, बेसमझ, चूतिया, घनचक्कर, भकुआ, भकुवा, अनसमझ, जाहिल, अपंडित, चंडूल, गावदी, बिलल्ला, मतिहीन, मूढ़ात्मा, मूढ़मति, बेवकूफ, नालायक, ना-लायाक, मुहिर, अबुध, अबुझ, अबूझ, गंवार, अबोध, चभोक, बकलोल, घोंघा, निर्बुद्धि, अयाना, चुग़द, चुगद, माठू, मूसलचंद, मूसलचन्द, मूसरचंद, मूसरचन्द, शीन, बाँगड़ू, मुग्धमति, पामर, अर्भक, अरभक, अल्पबुद्धि, जड़मति, अविचक्षण, अविद, अविद्वान, मूसर, लघुमति, गबरगंड, अविबुध, मंद, मन्द, घामड़, बेअक़्ल, बेअक्ल, बेअक़ल, बेअकल, बोदा, बोद्दा, बोबा - जो सामने, उपस्थित या मौजूद न हो:"आज श्याम कक्षा में अनुपस्थित था"
पर्याय: अनुपस्थित, ग़ैरहाज़िर, गैरहाजिर, ग़ैरमौज़ूद, गैरमौजूद, नदारद, नदारत, अविद्यमान, अप्रस्तुत, अप्राप्त, अवर्त्तमान, अवर्तमान - जो शिक्षित न हो या पढ़ा-लिखा न हो:"मैं उस गाँव का निवासी हूँ जहाँ के अधिकांश लोग अशिक्षित हैं"
पर्याय: अशिक्षित, अनपढ़, निरक्षर, अँगूठा छाप, अंगूठा छाप, अँगूठाछाप, अंगूठाछाप, जाहिल, अनक्षर, अपढ़, बेपढ़ा, अनपढ़ा, अनाखर, निपठित, अनुपदिष्ट, अपठ, अप्राज्ञ - विद्या से संबंध न रखने वाला:"वह अपने अविद्य पति को छोड़कर चली गई"
उदाहरण वाक्य
- जिससे अविद्य . ...शनिवार को नेहा शरद करेंगी पुस्तक का लोकार्पण .दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में शनिवार 20 मार्च को शाम 6 बजे नेहा शरद (स्व. शरद जोशी के बेटी) अपने पिता की पुस्तक राग भोपाली' का लोकार्पण करेंगी।
- किंतु सूक्ष् म दृष्टि से प्रत् यक्षवाद का विचार रख के विचारिए तो अवगत हो जाएगा कि छल में यदि केवल इतनी बुराई है कि धर्मशास् त्र की अवज्ञा होती है तो भलाई भी प्रत् यक्ष तथा इतनी ही है कि इसके द्वारा निर्धन दूसरों के धन का , निर्बल दूसरों के बल का , अविद्य दूसरों की विद्या का , अप्रतिष्ठित दूसरों की प्रतिष् ठा का भोग कर सकते हैं।
- किंतु सूक्ष् म दृष्टि से प्रत् यक्षवाद का विचार रख के विचारिए तो अवगत हो जाएगा कि छल में यदि केवल इतनी बुराई है कि धर्मशास् त्र की अवज्ञा होती है तो भलाई भी प्रत् यक्ष तथा इतनी ही है कि इसके द्वारा निर्धन दूसरों के धन का , निर्बल दूसरों के बल का , अविद्य दूसरों की विद्या का , अप्रतिष्ठित दूसरों की प्रतिष् ठा का भोग कर सकते हैं।