मूसरचंद का अर्थ
[ muserchend ]
मूसरचंद उदाहरण वाक्य
परिभाषा
विशेषण- जिसे बुद्धि न हो या बहुत कम हो या जो मूर्खतापूर्ण आचरण करता हो:"मूर्ख लोगों से बहस नहीं करनी चाहिए"
पर्याय: मूर्ख, बेवकूफ़, मूढ़, बुद्धू, जड़, उज़बक, उजबक, भोंदू, गँवार, नासमझ, नादान, अज्ञानी, बुद्धिहीन, बुधंगड़, मूरख, उजड्ड, भुच्च, भुच्चड़, अहमक, अहमक़, बावला, बावरा, पोंगा, अंध, अन्ध, अचतुर, अचेत, अज्ञान, बेसमझ, चूतिया, घनचक्कर, भकुआ, भकुवा, अनसमझ, जाहिल, अपंडित, चंडूल, गावदी, बिलल्ला, मतिहीन, मूढ़ात्मा, मूढ़मति, बेवकूफ, नालायक, ना-लायाक, मुहिर, अबुध, अबुझ, अबूझ, गंवार, अबोध, चभोक, बकलोल, घोंघा, निर्बुद्धि, अयाना, चुग़द, चुगद, माठू, मूसलचंद, मूसलचन्द, मूसरचन्द, शीन, बाँगड़ू, मुग्धमति, पामर, अर्भक, अरभक, अल्पबुद्धि, जड़मति, अविचक्षण, अविद, अविद्य, अविद्वान, मूसर, लघुमति, गबरगंड, अविबुध, मंद, मन्द, घामड़, बेअक़्ल, बेअक्ल, बेअक़ल, बेअकल, बोदा, बोद्दा, बोबा
- वह व्यक्ति जिसमें बुद्धि न हो या कम हो:"समाज में मूर्खों की कमी नहीं है"
पर्याय: मूर्ख, बेवकूफ़, लल्लू, गोबर गणेश, गँवार, अनाड़ी, गधा, गदहा, बैल, नादान, मूर्ख व्यक्ति, मूरख, अज्ञानी, उजबक, उज़बक, चूतिया, घनचक्कर, अहमक, अहमक़, उजड्ड, ढक्कन, मड्डी, ढक, अगुणज्ञ, बुद्धू, अजानी, अनारी, चंडूल, मूढ़ात्मा, मूढ़मति, चभोक, बेवकूफ, नासमझ, बकलोल, धोंधा, निर्बुद्धि, घोंघा, धोंडा, धुर्रा, चुग़द, चुगद, मूसलचंद, मूसलचन्द, मूसरचन्द, माठू, शीन, अमस, अरस, अल्हड़, अविवेकी, अविचारी, विवेकशून्य, अंधखोपड़ी, अन्धखोपड़ी, अविपश्चित, असयाना
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- ' राजा भोज जस मूसरचंद' कहने वालों के सिवा
- भीतर से , तो वह या तो उक्ति के लिए 'दाल भात में मूसरचंद' होगा अथवा उसका
- ' राजा भोज जस मूसरचंद' कहने वालों के सिवा देशभाषा में सुंदर भावभरी कविता करने वाले भी अवश्य ही रहे होंगे।
- योगासान और अनुलोम विलोम से ऊब चुके बाबा रामदेव भी राजनीति के रंगमंच में दाल-भात में मूसरचंद की तरह हाजिर हो गए।
- ' राजा भोज जस मूसरचंद ' कहने वालों के सिवा देशभाषा में सुंदर भावभरी कविता करने वाले भी अवश्य ही रहे होंगे।
- उनकी नजरों में या तो आत्मा-परमात्मा या लोक-परलोक नाम की कोई चीज हुई नहीं , या अगर हो भी तो उसे इस मामले में खामख्वाह ' दालभात में मूसरचंद ' बनने-बनाने की जरूरत नहीं।
- अगर वह दुनिया और उसका प्रबंधक हमारे इस भौतिक संसार के कारबार में ' दालभात में मूसरचंद ' नहीं बनता और दखल नहीं देता , तो हम भी उसमें क्यों दखल देने जाएँगे ? अगर काजी जी शहर की फिक्र से नाहक दुबले हो रहे थे , तो हम भी काजी क्यों बनें ? हम यहाँ कुछ यत्न करते और इस प्रकार इस भौतिक संसार एवं समाज को पूर्णत : बदलना चाहते हैं।