आशंसा का अर्थ
[ aashensaa ]
आशंसा उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- / मेरा आज खाने का मन नहीं है"
पर्याय: इच्छा, अभिलाषा, आकांक्षा, ख्वाहिश, ख़्वाहिश, आरजू, आरज़ू, तमन्ना, कामना, शौक, तलब, चेष्टा, हसरत, मुराद, अहक, पिपासा, प्यास, तृष्णा, मनोकामना, मनोवांछा, मनोरथ, मनोभावना, मर्ज़ी, मर्जी, मरज़ी, मरजी, मन, रजा, रज़ा, मंसा, मंशा, लिप्सा, लालसा, तृषा, चाह, अरमान, क्षुधा, भूख, भूक, छुधा, हवस, स्पृहा, अभीप्सा, अनु, अपेक्षिता, अभिकांक्षा, अभिकाम, वांछा, वाञ्छा, बाँछा, बाँछना, ईप्सा, मनसा, अभिध्या, अभिलाष, अभिमत, अभिमतता, अभिमति, अभिलास, अभिप्रीति, अभिलासा, अभिलाखा, अभिलाख, अभिलाखना, तशनगी, तश्नगी, शंस, इष्टि, अवलोभन, रगबत, व्युष्टि, श्लाघा, आशय, रुचि, इच्छता, इच्छत्व, इठाई, इश्तियाक, इश्तयाक, इश्तियाक़, इश्तयाक़, ईहा, ईछा, ईठि, रग़बत - मन का यह भाव कि अमुक कार्य हो जाएगा या अमुक पदार्थ हमें मिल जाएगा:"हमें उससे ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी"
पर्याय: आशा, आस, उम्मीद, प्रत्याशा, आसरा, आसा, आसार, तवक़्को, तवक्को - किसी वस्तु, व्यक्ति, आदि या उनके गुणों या अच्छी बातों के संबंध में कही हुई आदरसूचक बात:"प्रशंसा से सभी खुश और प्रोत्साहित होते हैं"
पर्याय: प्रशंसा, तारीफ़, तारीफ, सराहना, बड़ाई, प्रशस्ति, दाद, वाहवाही, अभिनंदन, अभिनन्दन, शाबाशी, स्तुति, अभिवादन, अभिवंदन, अभिवन्दन, अस्तुति, प्रस्तुति, मनीषा, शस्ति, शंस, व्युष्टि, श्लाघा, ईडा, पालि - ऐसा ज्ञान जिसमें पूरा निश्चय न हो:"मुझे उसकी बात की सच्चाई पर संशय है"
पर्याय: संशय, संदेह, सन्देह, शंका, शङ्का, आशंका, आशङ्का, भ्रांति, भ्रान्ति, शक, शुबहा, अंदेशा, अन्देशा, अभिशंका, अभिशङ्का, विशय, युतक - आदर-सम्मान:"सेठ मनोहरजी सबकी आवभगत करते हैं"
पर्याय: आवभगत, आदरसत्कार, आदर-सत्कार, आव-भगत, आव-आदर, ख़ातिरदारी, ख़ातिरी, खातिरदारी, खातिरी, आवभाव, आव-भाव, खातिर-तवाजा - किसी के बारे में कुछ कहने या बताने की क्रिया:"आज के नेता सभा आदि में केवल समस्याओं का जिक्र करते हैं उनका समाधान नहीं"
पर्याय: जिक्र, ज़िक्र, उल्लेख, चर्चा, बात, निर्देश
उदाहरण वाक्य
अधिक: आगे- उनकी साधना के पीछे कोई ऐहिक आशंसा नहीं थी।
- जी ! आप सभी की आशंसा ने बल दिया.
- कहते हैं बजट बनाते समय इसकी आशंसा नहीं थी .
- आशंसा भी आज क्या करूं , मेरे जैसे
- सस्नेहविद्यानिवास मिश्र२१-३-६०गोरखपुरप्रियवर , आपकी दीपावली शुभकामना आशंसा के साथ प्राप्त हुई.
- पर बिना आशंसा के कोई भी बौद्धिक मार्ग तय भी तो नहीं होता।
- उस बृहत्तर समुदाय तक मेरी कविताएँ पहुँच सकें और उनकी भी आशंसा पा सकें , यह सोच भी इस संग्रह के प्रकाशन के पीछे काम करती रही है।
- अजित जी , चन्द्रमौलेश्वर जी, जनमेजय जी, वशिनी जी, पद्मेश जी, बकुल जी, दिव्या जी, प्रवीण जी, राजेश्वर जी तथा देवराज जी ! आप सभी की आशंसा ने बल दिया.
- हिन्दुस्तान में बहुत कम लोगों से सही आशंसा या अभिज्ञान मिला , उन लोगों में सबसे ज्यादा अहैतुक स्नेही हैं और इसीलिए मैं हृदय से कृतज्ञभी हूँ, भेंट हम लोगों की बस दादा के अभिनंदन के हुजूम में हुई.
- ब्रज अंचल की अपनी भाषा लहजे में कही गयी बात को , दोहों की बुनावट कोद्र ÷बिट्वीन द लाइंस' नहीं, ÷बिट्वीन द वर्ड्स' पढ़ते हुए, उसके एक एक तार को खोलना, उनके निहितार्थों को समझना और तदुपरांत अपनी टिप्पणियों के साथ उनकी अर्थवना और महत्व का उद्घाटन, सचमुच शम्भु गुप्त हमारी आशंसा और हमारे साधुवाद के पात्रा हैं।