कुसुमायुध का अर्थ
[ kusumaayudh ]
कुसुमायुध उदाहरण वाक्य
परिभाषा
संज्ञा- एक देवता जो काम के रूप माने जाते हैं:"कामदेव को शिव की क्रोधाग्नि का सामना करना पड़ा"
पर्याय: कामदेव, काम देवता, अनंगी, पुष्पायुध, मदन, मनोज, रतिनाथ, अंगहीन, अशरीर, मकर ध्वज, मनमथ, मन्नथ, कंदर्प, अंड, अण्ड, अनंग, अदेह, अनन्यज, पंचबाण, पंचसर, नमुचि, स्मर, सुप्रतीक, मुहिर, अबलासेन, शंबरसूदन, शम्बरसूदन, शंबरारि, शम्बरारि, संकल्पभव, संकल्पयोनि, शुकवाह, शिखि, चैत्रसखा, अंगजात, अपांग, चित्तज, रतिवर, रतिराज, समर, मनसिज, मदराग, मीनकेतु, मीनध्वज, रुद्रारि, शारंग, सारंग, हृदयनिकेतन, झषकेतु, झषांक, रूपास्त्र, भव, मीनकेतन, चेतात्मजा, चेतोजन्मा, सुमसायक, वसंत-बंधु, वसन्त-बन्धु, वसंतसख, वसन्तसख, वसंतसखा, वसन्तसखा, मधुसखा, मधुसहाय, मधुसारथि, मधुसख, मधुसुहृद, निषद्वर, रागरज्जु, रागवृंत, रागवृन्त, रागच्छन, विषमवाण, विषमविखिज, पुष्पपत्री, पुष्पशर, पुष्पशरासन, रतिनाह, इ, रणरणक, वाम, अयुग्मबाण, अयुग्मशर, प्रसूनवाण, शृंगारजन्मा, जराभीस, मनजात, कुसुमकार्मुक, कुसुमचाप, कुसुमेषु, कुसुमधन्वा, कुसुमबाण, कार्ष्णि, श्रीज, श्रीपुत्र, रवीषु, पुष्पचाप, मनोभू, असमवाण, पंचवाण, असमशर, आत्मज, आत्मजात, आत्मप, धानकी, पंचशर, वरीषु, रमण, पुष्पकेतन, पुष्पधन्वा, पुष्पध्वज, पुष्पचाप
उदाहरण वाक्य
- कौन जाग रहा है धनुर्धर जब की भुवन भर सोता है भोगी कुसुमायुध योगी सा बना दृष्टिगत होता है
- कुसुमायुध के तूणीर में खिली प्रकृति से लिये पाँच बाण रहते हैं जिनके नाम और प्रभाव अमरकोश में ऐसे दिये गये हैं :
- भोगी कुसुमायुध योगी-सा , बना दृष्टिगत होता है॥ किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये, राजभोग्य के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिये।
- चितवन जिस ओर गई उसने मृदों फूलों की वर्षा कर दी , मादक मुसकानों ने मेरी गोदी पंखुरियों से भर दी हाथों में हाथ लिए, आए अंजली में पुष्पों से गुच्छे, जब तुमने मेरी अधरों पर अधरों की कोमलता धर दी, कुसुमायुध का शर ही मानो मेरे अंतर में पैठ गया! गरमी में प्रात:काल पवन कलियों को चूम सिहरता जब तब याद तुम्हारी आती है।
- पुलक प्रकट करती है धरती , हरित तृणों की नोकों से,मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर वीर निर्भीकमना,जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये,राजभोग्य के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिये।